यह बहस राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों पर सहमति देने की राज्यपाल की शक्ति के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय की पांच-न्यायाधीशों की पीठ की राय पर केंद्रित है। चर्चा में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल सत्यपाल जैन, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा और वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे शामिल हैं, जो विश्लेषण करते हैं कि क्या अदालत को राज्यपालों के लिए समयसीमा निर्धारित करनी चाहिए थी। वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे कहते हैं, ‘मुझे कहना होगा कि राय ने संसदीय लोकतंत्र को खिड़की से बाहर फेंक दिया है।’ पैनल अनुच्छेद 200 के तहत एक संवैधानिक प्राधिकारी के रूप में राज्यपाल की भूमिका बनाम एक निर्वाचित विधायिका की इच्छा पर चर्चा करता है। बातचीत में राज्यपालों और राज्य सरकारों के बीच संघर्ष के उदाहरणों को भी छुआ गया है, जिसमें सवाल उठाया गया है कि क्या अदालत का फैसला अधिक भ्रम पैदा करेगा या संघवाद के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण प्रदान करेगा।
