सुप्रीम कोर्ट ने राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए समयसीमा के संबंध में राष्ट्रपति के संदर्भ पर अपनी राय दी। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अगुवाई वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि अदालतें इन संवैधानिक पदों के लिए समयसीमा तय नहीं कर सकती हैं, लेकिन यह भी कहा कि राज्यपाल विधेयकों को लगातार नहीं रोक सकते। डीएमके ने कहा कि तमिलनाडु में राज्यपाल आरएन रवि, जो ‘संवैधानिक पद पर हैं, बार-बार जानबूझकर राजनीति से प्रेरित निर्णय लेते हैं, जिससे उनके पद की गरिमा धूमिल होती है।’ यह राय अप्रैल 2025 के फैसले को उलट देती है जिसने तीन महीने की समयसीमा लगाई थी और ‘मानित सहमति’ की अवधारणा को संविधान से अलग घोषित किया था। अदालत ने स्पष्ट किया कि हालांकि राज्यपाल के कार्य न्यायसंगत नहीं हैं, अदालतें लंबे समय तक निष्क्रियता के मामलों में निर्देश जारी कर सकती हैं।
